Secularism Socialism Constitution : लंबे समय से भारतीय संविधान से विभिन्न शब्दों को हटाए जाने को लेकर चर्चा चल रही थी लेकिन अब सरकार की तरफ से लिखित में बयान देकर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को संविधान से नहीं हटाया जाएगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी तरफ से इसे लेकर किसी भी तरह की योजना पर कार्य नहीं किया जा रहा था। आपातकाल के दौरान दौड़ जोड़े गए इन दोनों शब्दों को लगातार हटाने की चर्चा मीडिया जगत में चल रही थी। जिसके बाद केंद्र सरकार के द्वारा राज्यसभा में इसे लेकर जवाब पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के द्वारा इस बात को सरकार की तरफ से रखा गया।
याचिका 2024 में हो चुकी खारिज
केंद्र सरकार की तरफ से राज्यसभा में लिखित जवाब पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा की लगातार समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द को लेकर पुनः विचार के लिए कुछ समूह के द्वारा राय व्यक्त की जा रही थी। इससे विभिन्न तरह की चर्चाओं को पैदा होने का मौका मिलता है लेकिन सरकार का अभी इसे लेकर कोई आधिकारिक मत नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि 42 वें संविधान संशोधन के तहत चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नवंबर 2024 में खारिज किया जा चुका है। केंद्र सरकार की तरफ से राज्यसभा में लिखित जवाब पेश कर दिए जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि फिलहाल समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द को संविधान से हटाने को लेकर कोई भी कार्रवाई प्रक्रियाधीन नहीं है और ना ही इस पर केंद्र सरकार के द्वारा विचार किया जा रहा है।
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उपराष्ट्रपति ने बताया था इन्हें संविधान का नासूर
आपातकाल के 50 साल पूरे हो जाने के बाद संविधान में शामिल समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को लेकर चर्चा शुरू हुई थी। जिसके बाद भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा भी इन शब्दों पर टिप्पणी की गई थी। उन्होंने कहा था कि यह शब्द संविधान के लिए नासूर हैं। उन्होंने कहा था कि संविधान की प्रस्तावना एक पवित्र है और इसे किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकता। ऐसे में इन जोड़े गए शब्दों के कारण सनातन की भावना का अपमान हुआ है। उन्होंने यह भी कहा था कि आपातकाल के दौरान जोड़े गए इन शब्दों के कारण उथल-पुथल पैदा हो सकती है। यह शब्द देश की हजारों साल की सभ्यता और संपदा को छोटा करने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इन शब्दों को 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान में जोड़ा गया था। जिस समय इनको संविधान में जोड़ा गया था उस वक्त देश में आपातकाल लागू था। आपातकाल की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा 25 जून 1975 को की गई थी।
धनकड़ ने प्रस्तावना में बदलाव को बताया था मजाक
भारतीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा प्रस्तावना में किए गए बदलाव को मजाक करार दिया गया था। उन्होंने कहा था कि संविधान में प्रस्तावना बीज की भांति कार्य करती है। जिस से संविधान का विकास होता है। इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता। बिना किसी कारण के इमरजेंसी के दौरान इन्हें जोड़ा गया। इमरजेंसी के दौरान विपक्ष के नेता जेल में थे तो सरकार के द्वारा यह कार्य किया गया। संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया जा सकता लेकिन तत्कालीन सरकार के द्वारा 42 वें संविधान संशोधन के तहत समाजवाद धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्द जोड़े गए जो कि संविधान के भावना की विपरीत था। इसके बाद लगातार यह चर्चा चल रही थी कि केंद्र सरकार के द्वारा संविधान से इन शब्दों को हटाने की तैयारी की जा रही है लेकिन सदन में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन रामपाल के द्वारा बयान देने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि फिलहाल सरकार की ऐसी मंशा नहीं है।

राहुल गांधी ने लगाया था सरकार पर आरोप
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को लेकर पैदा हुई चर्चा के बाद केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाए गए थे। उन्होंने कहा था कि आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी को संविधान अच्छा नहीं लगता उन्हें मनुस्मृति चाहिए। बहुजन और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस दोबारा गुलाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनने का कार्य इनके द्वारा किया जा रहा है। राहुल गांधी के द्वारा दिए गए इस बयान के बाद कांग्रेस के द्वारा देश भर में संविधान बचाओ की थीम पर आंदोलन किए गए थे।
कांग्रेस का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी संविधान में परिवर्तन करते हुए लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना चाहती है। आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन कर जोड़े गए शब्दों में समाजवाद का अर्थ ऐसी व्यवस्था से है जिसमें आर्थिक और सामाजिक समानता सभी लोगों को प्राप्त होती हो। गरीब कमजोर लोगों को भी संसाधनों का समान रूप से वितरण किया जाए। दूसरी तरफ धर्मनिरपेक्ष शब्द से तात्पर्य राज्य में सभी धर्म का सम्मान करने से है। भारत में किसी भी एक धर्म का पक्ष न लेकर सभी धर्म को समान रूप से माना जाता है। भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। जहां पर किसी भी एक धर्म को महत्व नहीं देकर सभी धर्म को बराबर रूप से सम्मान मिलता है।