Katchatheevu Island Dispute : भारत और श्रीलंका के बीच लंबे समय से विवाद का कारण रहा कच्चातिवु द्वीप को लेकर श्रीलंका की तरफ से बड़ा बयान दिया गया है। श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कहा कि वह इस द्वीप को किसी भी सूरत में भारत को नहीं सोपेंगे। इस द्वीप पर कानूनी तौर पर श्रीलंका का अधिकार है। ऐसे में भारतीय मछुआरों के द्वारा लगातार इस सीमा में घुसकर कानून का उल्लंघन किया जा रहा है और वह इस द्वीप के संसाधनों को लूटने का कार्य कर रहे हैं। कुछ समय पहले श्रीलंका के द्वारा भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था।
डिप्लोमेटिक रास्ते से सुलझाए विवाद -श्रीलंका
श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कहा कि लंबे समय तक विवाद चले इस द्वीप पर कानूनी तौर पर श्रीलंका का अधिकार है और श्रीलंका इस द्वीप को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि इस द्वीप को लेकर चल रहे विवाद पर डिप्लोमेटिक रास्ते हमेशा खुले हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक इस द्वीप पर अधिकार श्रीलंका का है और वह इसे कभी नहीं छोड़ेगा। उन्होंने भारत में इस पर चल रही राजनीति बहस को यहां की पार्टियों का मामला करार दिया।
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भारतीय मछुआरों पर लगाया विदेश मंत्री ने आरोप
श्रीलंका के विदेश मंत्री ने भारतीय मछुआरों पर बड़ा आरोप लगाया है। उनका कहना है कि भारतीय मछुआरों के द्वारा श्रीलंका की समुद्री सीमा में घुसकर मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है। भारतीय मछुआरे श्रीलंका के संसाधनों को लूटने के साथ-साथ इस द्वीप की समुद्री संपदा को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि समुद्री पौधों को भारतीय मछुआरों के द्वारा नष्ट किया जा रहा है। लंबे समय से भारतीय मछुआरों को लेकर श्रीलंका के द्वारा विरोध जताया जाता रहा है। कुछ समय पहले भी श्रीलंका के द्वारा भारतीय मच्छरों को गिरफ्तार किया गया था।
मछुआरो की गिरफ्तारी को लेकर चलता रहता है विवाद
भारत और श्रीलंका के बीच लंबे समय से विवाद का मुद्दा इस द्वीप को माना जाता है। लेकिन पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा किए गए समझौते के मुताबिक इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था लेकिन विवाद इसके बाद भी जस का तश बना हुआ है। लंबे समय से यह देखा जाता है कि भारत और श्रीलंका के मछुआरे एक दूसरे की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। जिसके कारण दोनों देशों में टकराव की स्थिति में पैदा हो जाती है और भारत और श्रीलंका दोनों के द्वारा ही एक दूसरे देश के मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। दोनों ही देश एक दूसरे के ऊपर समय-समय पर आरोप प्रत्यारोप करते रहते हैं।
1974 में श्रीलंका को सौंपा था इंदिरा गांधी ने द्वीप
जिस कच्चातिवु द्वीप को लेकर लगातार भारत और श्रीलंका के बीच विवाद बना रहता है। इस विवाद का स्थाई समाधान निकालने के लिए पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा 1974 में इसे श्रीलंका को गिफ्ट कर दिया गया था। रामेश्वरम से लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर 285 एकड़ में फैला यह द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को आपस में जोड़ने का कार्य करता है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के मुताबिक इस द्वीप का क्षेत्रफल 285 एकड़ है। ज्वालामुखी विस्फोट से निर्मित इस द्वीप से रामेश्वरम की दूरी लगभग 19 किलोमीटर है तो वहीं श्रीलंका के जाफना से इसकी दूरी 16 किलोमीटर के लगभग है।

शांतिपूर्ण संबंधों के लिए श्रीलंका को सौंपा था द्वीप
भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा 1974 में इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था। जिस समय इस द्वीप को श्रीलंका को सोपा गया था भारत लगातार अपने पड़ोसी देशों से संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा था। इसी कोशिश के तहत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ यह समझौता किया था। हालांकि तमिलनाडु सरकार के द्वारा तब से लेकर अब तक लगातार इस फैसले का विरोध किया जाता रहा है। भारत सरकार के द्वारा श्रीलंका से इस द्वीप को लेकर किए गए समझौते के मुताबिक भारतीय मछुआरों को जाल सुखाने और मछली मारने का अधिकार दिया गया था लेकिन श्रीलंका के द्वारा 2009 के बाद से लगातार भारतीय मछुआरों को यहां जाने पर गिरफ्तार करना शुरू कर दिया गया था।
मछुआरे उठा रहे लगातार मुद्दा
भारत के द्वारा इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप देने के बाद से लगातार तमिलनाडु सरकार के द्वारा भारत सरकार से इस फैसले को लेकर विरोध जताया जा रहा है। समय-समय पर इस द्वीप को उन्हें प्राप्त करने की भी मांग की जाती रही है। भारतीय मछुआरे इस द्वीप पर जाकर मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन करते हैं। दूसरी तरफ श्रीलंका का कहना है कि भारत के मछुआरों के द्वारा लगातार इस क्षेत्र में मछली पकड़ने से मछली तथा दूसरे जलीय जीवों की कमी हो गई है। इसीलिए भारतीय मछुआरों के द्वारा श्रीलंका की सीमा में जाने पर उन्हें गिरफ्तार करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। दूसरी तरफ भारतीय मछुआरे भी तमिलनाडु सरकार पर लगातार इस मुद्दे को लेकर दबाव बनाते हुए नजर आते हैं।