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वैश्विक तनाव के बीच आज से शुरू होगा नाटो का समिट

NATO Summit 2025 : ईरान और इजरायल के बीच चल रहे संघर्ष के बीच जारी वैश्विक तनाव की परिस्थितियों में आज से नाटो का सम्मिट शुरू होगा। आज से शुरू होने वाला नाटो का यह समिट नीदरलैंड में आयोजित होगा। नीदरलैंड के हेग शहर में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन नाटो  सम्मिट शुरू होने जा रहा है। आज से शुरू होने वाले इस समिट में ईरान और इजरायल के बीच चल रहे  संघर्ष की ताजा स्थिति पर चर्चा हो सकती है।

सबसे बुरे दौर में सबसे मजबूत सैन्य संगठन

वैसे तो नाटो को दुनिया का सबसे मजबूत सैन्य संगठन माना जाता है लेकिन वर्तमान में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन संगठन की हालत अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर में है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई मौको पर नाटो को लेकर आलोचना कर चुके हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति नाटो के प्रति अपनी आलोचना को कई अहम मौको पर जग जाहिर कर चुके हैं। लगभग 76 साल पहले बने सैन्य संगठन के इस समिट को अहम माना जा रहा है क्योंकि इस समय दुनिया के सामने ईरान इजरायल के संघर्ष के साथ-साथ लंबे समय से चला आ  रहा रूस यूक्रेन युद्ध बड़ी समस्या बने हुए हैं।  ऐसे में सभी की  नजर आज से शुरू होने वाले नाटो के इस समिट पर टिकी हुई है।

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1949 में हुई थी नाटो की स्थापना

विश्व की सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को की गई थी। बताया जाता है कि नाटो की स्थापना में सबसे अहम योगदान अमेरिका का रहा था। अमेरिका के सहयोग से लगभग 76 साल पहले नाटो की स्थापना हुई थी। नाटो एक सैन्य गठबंधन है जिसका विभिन्न देश हिस्सा है। वर्तमान में नाटो का मुख्यालय बेल्जियम के ब्रसेल्श  में है। दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो में वर्तमान में कुल 30 लाख सैनिक बताये जा रहे हैं जबकि इस संगठन की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी और फ्रेंच को चुना गया है। दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन का 2024 तक रक्षा बजट 1300 अरब डॉलर के लगभग बताया जा रहा था।

32 देश है नाटो के सदस्य

दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो की स्थापना के समय कुल 12 देश इसके सदस्य थे। अमेरिका भी नाटो के संस्थापक सदस्यों में से एक है। वर्तमान में नाटो में कुल 32 देश सदस्य हैं जिनमें से दो उत्तरी अमेरिकी देश इस में शामिल है जबकि 30 देश यूरोप महाद्वीप के नाटो में सदस्य हैं। नाटो एक सैन्य संगठन है जिसका उद्देश्य इसके सदस्यों की विभिन्न परिस्थितियों में रक्षा करना है।

नाटो के  सदस्य किसी भी देश पर दूसरे देश के द्वारा हमला कर देने की स्थिति में सभी देश मिलकर उसका साथ देते हैं। सभी देशों के एक साथ सहयोग में उतर जाने पर नाटो का पलड़ा हमेशा भारी रहता आया है। यह भी बताया जाता है कि नाटो के नियमों के मुताबिक यदि इसके किसी भी सदस्य के ऊपर हमला होता है तो उसे सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाता है।

और जुड़ते चले गए नाटो में सदस्य

नाटो सैन्य संगठन की स्थापना के समय कुल 12 देश ही इसके सदस्य थे। अमेरिका की मुख्य भूमिका के कारण नाटो की स्थापना होना माना जाता है। 1949 में नाटो की स्थापना के समय अमेरिका के अलावा इस संगठन में यूके, पुर्तगाल, नीदरलैंड, नॉर्वे, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, डेनमार्क, लक्जमबर्ग, आइसलैंड, और इटली शामिल थे इसके बाद धीरे-धीरे इस संगठन का विस्तार होता रहा। 1952 में तुर्की और ग्रीस  भी इस संगठन का हिस्सा बन गए जबकि 1955 में जर्मनी तथा 1982 में स्पेन ने भी इस संगठन की सदस्यता ग्रहण कर ली।

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पोलैंड चेक गणराज हंगरी के द्वारा 1999 में नाटो की सदस्यता प्राप्त की गई जबकि 2004 में बड़ी संख्या में कई देश नाटो के सदस्य बने जिनमे स्लोवेनिया स्लोवाकिया रोमानिया लिथुआनिया लाटविया एस्टोनिया और बुल्गारिया शामिल हैं। क्रोशिया और अल्बानिया 2009 में नाटो के सदस्य बने जबकि मोंटेनीग्रो 2017 में और उत्तर मेसिडोनिया 2020 में नाटो के सदस्य बने। फिनलैंड के द्वारा 2023 में जबकि स्वीडन के द्वारा 2024 में नाटो की सदस्यता ग्रहण की गई।

अमेरिका और ब्रिटेन के प्रभाव से नाराज होकर फ्रांस हुआ अलग

दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो में पहले फ्रांस भी सदस्य देश हुआ करता था लेकिन 1966 में फ्रांस ने अपने आप को नाटो से अलग कर लिया। बताया जाता है कि नाटो से अलग होने को लेकर फ्रांस के द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि इस संगठन में अमेरिका और ब्रिटेन के द्वारा जरूरत से ज्यादा प्रभाव बढ़ाया जाता रहा है। ब्रिटेन और अमेरिका के द्वारा इस संगठन में दखल देने के कारण अपनी संप्रभुता का हवाला देते हुए फ्रांस इस संगठन से अलग हो गया था।

फ्रांस की तरह ही तुर्की से विवाद होने के बाद ग्रीस  ने भी नाटो संगठन को छोड़ दिया था। नाटो के विभिन्न संगठन सदस्यों के बीच समय-समय पर पैदा हुए तनाव के कारण कई बार स्थिति सदस्य देशों के बीच भी बिगड़ी हुई नजर आती है। यही कारण है कि अब दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा भी कई बार आलोचना कर दी गई है। कभी शक्तिशाली संगठन के रूप में पहचाने जाने वाले नाटो को वर्तमान में सबसे खराब दौर से गुजरना पड़ रहा है।

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